समकालीन कथा-साहित्य में सूर्यबाला का लेखन अपनी विशिष्ठ भूमिका और महत्व रखता है। अब तक प्रकाशित पाँच उपन्यास, दस कथा-संग्रह और चार व्यंग्य-संग्रहों के अतिरिक्त डायरी, संस्मरणों पर भी उन्होंने कलम चलाई है। समाज, परंपरा, आधुनिकता एवं उनसे जुड़ी समस्याओं को सूर्यबाला एक खुली, मुक्त और नितांत अपनी दृश्टि से देखने की कोषिष करती हैं। उसमें न अंधश्रद्धा है, न एकांगी विद्रोह। अनेक रचनाएं कक्षा आठ से स्नातक एवं स्नातकोत्तर कक्षाओं में पाठ्यक्रमों में संकलित।
उपन्यास ‘दीक्षांत’ तथा ‘यामिनी कथा’ क्रमषः स्नातक तथा स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में। टी.वी. धारावाहिक के माध्यम से अनेक कहानियों, उपन्यासों तथा हास्य-व्यंग्यपरक रचनाओं को रूपांतर प्रस्तुत, जिसमें पलाष के फूल, न किन्नी न, सौदागर, एक इन्द्रधनुष जुबेदा के नाम, सबको पता है, रेस, निर्वासित आदि प्रमुख हैं।
‘सज़ायाफ़्ता’ कहानी पर बनी टेलीफिल्म को वर्ष 2007 का सर्वश्रेश्ठ टेलीफिल्म पुरस्कार।
कोलंबिया विष्वविद्यालय (न्यूयार्क), वेस्टइंडीज विष्वविद्यालय (त्रिनिनाद) एवं नेहरू सेंटर (लंदन) में कहानी एवं व्यंग्य रचनाओं का पाठ।
सम्मान: प्रियदर्षिनी पुरस्कार, घनष्यामदास सराफ पुरस्कार, दक्षिण भारत प्रचार सभा, काषी नागरी प्रचारिणी सतपुड़ा लोक संस्कृति, अभियान, मुंबई विद्यापीठ, व्यंग्य-श्री पुरस्कार, रत्नादेवी गोइन्का वाग्देवी पुरस्कार, राजस्थान लेखिका मंच वाग्मणि सम्मान, आजीवन उपलब्धि सम्मान, स्वजन, हरिशंकर परसाई, स्मृति सम्मान, अभियान(उत्तर भारतीय संघ), महाराश्ट्र सरकार का षिवाजी राश्ट्रीय एक पुरस्कार, साहित्य गौरव सम्मान(जीवंती फाउंडेषन) आदि से सम्मानित।